धमकी और बयानों के बाद, पप्पू यादव के पूर्णिया चुनाव यात्रा में नई चुनौतियाँ
पूर्णिया में निर्दलीय चुनाव लड़ रहे पप्पू यादव के घर-दफ्तर पर पुलिस ने गुरुवार को धमकी दी। प्रचार के लिए जुटाए गए वाहनों के कागजात चेक किए। पप्पू इसे लेकर पुलिस और प्रशासन पर खूब चिल्लाए-झल्लाए। राज्य सरकार पर बरसे। यहां तक कि अपनी जान पर खतरा भी बता दिया। वाई कैटेगरी सुरक्षा के लिए अपने को उपयुक्त बताते हुए उन्होंने सुरक्षा में तैनात बिहार पुलिस के जवानों की कम संख्या पर भी उन्होंने गुस्से का इजहार किया। धमकी भी दी कि हम किसी से डरने वाले नहीं हैं। हमें डराने की कोशिश हो रही है। सच तो यह है कि पप्पू यादव के घर पुलिस वाहनों के कागजात जांचने गई थी। प्रशासन को सूचना मिली थी कि बिना परमिशन की गाड़ियां पप्पू के प्रचार में लगी हैं। संभव है कि प्रशासन से यह शिकायत किसी उम्मीदवार ने की हो। इसलिए कि पप्पू यादव के सामने फिलवक्त दो दुश्मन हैं। एक तो तीसरी बार पूर्णिया से चुनाव लड़ रहे एनडीए के उम्मीदवार संतोष कुशवाहा ही हैं और दूसरी उनकी दुश्मन बीमा भारती बन गई हैं।
वैसे पप्पू यादव पुलिस की जांच को सियासी रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसमें कोई दम नहीं दिखता। बिहार में सरकार एनडीए की है। पप्पू निर्दलीय उम्मीदवार हैं। एनडीए के खिलाफ इंडी अलायंस की बीमा भारती मैदान में हैं। राज्य सरकार के इशारे पर अगर प्रशासन को कोई कार्रवाई ही करनी होती तो बीमा भारती भी नहीं बचतीं। दूसरा कि इलेक्शन के समय ऐसा कदम जान-बूझ कर राज्य सरकार नहीं उठाएगी, जिससे पप्पू यादव को जनता की सहानुभूति मिले। पप्पू यही आरोप लगा कर जनता की सहानुभूति बटोर भी रहे हैं।
पप्पू यादव से किसी की खुन्नस है तो वे हैं आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव। लालू ने ही कांग्रेस पर दबाव बना कर पप्पू को पूर्णिया सीट नहीं दी। अपने उम्मीदवार बीमा भारती को वहां से उम्मीदवार बना दिया। एनडीए क्यों पप्पू से उलझ कर अपनी ही हवा खराब करना चाहेगा। एनडीए के लिए खुशी की बात है कि पप्पू यादव इंडी अलायंस के उम्मीदवार को चुनौती दे रहे हैं। पप्पू भी यादव-मुस्लिम वोटों पर भरोसा कर रहे हैं, जिसकी दावेदार बन कर बीमा भारती आरजेडी की प्रत्याशी बनी हैं। दोनों के झगड़े में तो एनडीए को अपना ही हित सधता दिख रहा होगा। पूर्णिया की दो तरफा जंग पप्पू की वजह से तितरफा हो गई है। पप्पू और बीमा का एक ही वोट आधार है। एनडीए के वोटर जल्दी टूटते नहीं। खासकर लोकसभा चुनाव में। वे नरेंद्र मोदी के नाम पर अधिक वोट करते हैं, बनिस्पत अपने समर्थित दल के नेता या उम्मीदवार को देख कर।