जीवन का लक्ष्य: साधना का महत्व और अभ्यास की आवश्यकता
॥साधना॥
प्रत्येक व्यक्ति जीवन के साथ एक लक्ष्य लेकर आता है। प्रारब्ध के रुप मे पिछले कमोॅ के फल लेकर आता है । इसी के सहारे वह वर्तमान जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है।
एक पालित के रुप मे हमारा बच्चौं के प्रति क्या सकारात्मकता भाव और दायित्व होना चाहिए है इसी पर मनन करना है।
कोई भी इन्सान साधना के माध्यम से वह नारायण भी बन सकता है और साधना के अभाव मे वह अपने लक्ष्य को विस्मृत भी कर सकता है अथवा भटक भी सकता है।
भगवान कृष्ण ने कहा है ” अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्य च न गृह्त्ते ।”
जीवन मे विकास,उन्नति,परिष्कार आदि का एक ही मार्ग है — अभ्यास ।
इसलिऐ बालकों को अभ्यास के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा उन्हे हमे मोटिवेट करना चाहिए कि ” शिक्षारथिॅ काल मे हमे हमारी पढाई को साधना के रुप मे रखना तथा अभ्यास को सर्वोच्य स्थान प्रदान करना चाहिए ।
अन्य भाव मे अभ्यास की इस निरन्तरता को ही साधना कहा जाता है।इसलिए हमे शैक्षिक चक्र मे भी साधना का संकल्प लेना चाहिए।