पप्पू यादव: एक प्रशासकीय राजनैतिक यात्रा की कहानी
2015 में पप्पू ने जन अधिकार पार्टी (जाप) का गठन किया था और उसके बाद के लोकसभा व विधानसभा का चुनाव भी लड़े। इन क्षेत्रों में से उन्हें कहीं भी सफलता नहीं मिली। यही कारण है कि उनकी जिस पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ है उसके विधायक-सांसद तो दूर उससे सीधे जुड़े मुखिया-सरपंच तक नहीं। अलबत्ता पप्पू के साथ समर्थकों का एक हुजूम होता है।इधर के दिनों में दूसरे दलों से कांग्रेस में जितने भी छोटे-बड़े नेता आए, उनमें पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सर्वाधिक सक्रिय रहे हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षा में अपनी अलग पार्टी जन अधिकार पार्टी तक बनाए और चुनाव में दांव आजमाकर भी देख लिया। अब पुत्र सार्थक रंजन के साथ कांग्रेस के हो गए हैं। इस प्रतिबद्धता के साथ कि कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल में वे कांग्रेस व महागठबंधन की मजबूती के लिए अथक प्रयास करेंगे। उन्होंने इसकी सार्वजनिक रूप से घोषणा की है। पत्नी रंजीत रंजन पहले से ही कांग्रेस का हाथ थामे हुए है और छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की सदस्य हैं। पप्पू के बारे में भी यह धारणा है कि वे कहीं टिक कर नहीं रहते। संसदीय क्षेत्र की तरह पार्टी भी बदलते रहते हैं। हालांकि, उन्होंने यह कसरत पिछले वर्षों में की है और उसका परिणाम भी देख-समझ चुके हैं।
कांग्रेस जाति-संप्रदाय में विश्वास नहीं रखती’
बिहार कांग्रेस आज जिस स्थिति में है, उसमें असीम धैर्य की आवश्यकता है। पार्टी के एक अनुभवी का कहना है कि कांग्रेस की अपनी चाल-ढाल है और वह बिहार को क्षेत्र में बांटकर नहीं देखती, न ही जाति-संप्रदाय की राजनीति में विश्वास रखती है।