अखिलेश के नाराज होने से बढ़ सकती है समाजवादी पार्टी की मुश्किलें! क्या मैनपुरी, फिरोजाबाद, और एटा में दिखेगा उनका असर?
आम चुनाव को लेकर पार्टियां दिन-रात एक समर्पित हैं। इस चुनावी माहौल में ऐसा प्रतीत होता है कि समाजवादी पार्टी में अंदरूनी खींचतान का असर ब्रज क्षेत्र में सपा के गढ़ वाली सीटों पर भी पड़ सकता है। जानकारों का मानना है कि मैनपुरी, फिरोजाबाद, और एटा सीट पर इसका असर दिख सकता है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खां अखिलेश यादव नाराज हैं, क्योंकि अखिलेश यादव ने रामपुर से चुनाव लड़ने का उनके प्रस्ताव को नहीं माना है। इसकी नाराजगी वह सार्वजनिक रूप से जाहिर कर चुके हैं।
मेरठ में समाजवादी पार्टी ने तीसरी बार प्रत्याशी को बदला है। आगरा और मुरादाबाद में भी समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी को बदला है। बदायूं से पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव का टिकट काटकर शिवपाल यादव को उतारा गया है। शिवपाल यादव इस चुनाव में भाग नहीं लेना चाहते हैं। बहुत से बार वे इशारों-इशारों में अपनी नाराजगी दर्शा चुके हैं। उधर टिकट काटने से धर्मेंद्र यादव भी नाराज हैं। मैनपुरी के पूर्व सांसद तेज प्रताप सिंह भी कुछ खींचाव के लक्षण दिखा रहे हैं। हालांकि धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव मैनपुरी में चुनावी जमीन पर अपनी उपस्थिति का एहसास करा चुके हैं, उनमें पहले जैसा जोश और उत्साह नजर नहीं आ रहा है।
आगरा सीट पर समाजवादी पार्टी ने दो बार जीत चुकी है। यहां से सपा के उम्मीदवार रहे चुके राज बब्बर सांसद हैं। आगरा सीट पर सपा का वोट बैंक मजबूत है, लेकिन फिलहाल समाजवादी पार्टी का चुनावी प्रचार धीमा दिख रहा है। मथुरा सीट गठबंधन के कारण सपा ने कांग्रेस के लिए छोड़ दी है। फिरोजाबाद, मैनपुरी और एटा सीटें समाजवादी पार्टी के गढ़ मानी जाती हैं। फिरोजाबाद में इसका पिछले चुनावों में परिणाम देखा गया है। चाचा शिवपाल यादव जब अपने भतीजे अक्षय यादव के खिलाफ आए थे, तो इससे सपा को सीट खोना पड़ा था। शिवपाल यादव इस बार भी बहुत खुश नहीं नजर आ रहे हैं। उन्हें चाहिए कि उनके पुत्र आदित्य यादव राजनीति में कैसे प्रवेश करें। उनकी कोशिश इसी दिशा में जारी है। अक्षय यादव फिरोजाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं और रामगोपाल यादव भी इस सीट पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव भी फिरोजाबाद में अधिक समय दे रहे हैं जहां उनके पुत्र अक्षय यादव चुनाव लड़ रहे हैं। शिवपाल यादव भी अपने क्षेत्र के सीमित रह रहे हैं। इस चुनावी माहौल में अखिलेश यादव को ही प्रचार मोर्चे पर देखा जा रहा है। यहां तक कि वे बसपा के साथ गठबंधन से भी थे। चुनावी माहौल में स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ समाजवादी पार्टी को लाभ हो सकता था, जिससे पार्टी को उनकी तरफ से प्रचार में सहायता मिल सकती थी।