शशांक मणि त्रिपाठी: देवरिया के योद्धा का संघर्ष और सफलता की कहानी
शशांक मणि त्रिपाठी के पिता श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) व दो बार के सांसद…। बाबा स्वर्गीय सुरत नारायण मणि त्रिपाठी आईएएस अधिकारी रहे। चाचा श्रीविलास मणि त्रिपाठी सेवानिवृत्त डीजीपी…। …और खुद आईआईटी दिल्ली से बीटेक और आईएमडी लुसान स्विट्जरलैंड से एमबीए। यह भारी भरकम परिचय है भाजपा के देवरिया से प्रत्याशी बनाए गए शशांक मणि त्रिपाठी का। उनका मुकाबला कांग्रेस के अखिलेश प्रताप सिंह से है।
20 साल पहले 2004 में जब श्रीप्रकाश मणि के दूसरे संसदीय कार्यकाल का आखिरी साल था, शशांक शायद इसी उम्मीद में विदेश के ऐशो-आराम छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे कि बुजुर्ग पिता जब सियासत से विदा लेंगे तो विरासत में सीट उन्हें मिल जाएगी। लेकिन 2004 और 2009 में टिकट पाने के बावजूद श्रीप्रकाश मणि चुनाव हार गए। शशांक का इंतजार लंबा हो गया। लगातार दो हार झेलने के बाद भाजपा ने इस सीट को निकालने के लिए 2014 में अपने एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र को उतारा, जबकि 2019 में दूसरे प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी का सहारा लिया। रणनीति कारगर रही। पिता की सियासी विरासत न पाने के बावजूद शशांक निराश नहीं हुए और पार्टी में मीडिया पैनलिस्ट सहित अलग-अलग भूमिकाओं में लगे रहे। कलराज और रमापतिराम देवरिया के लिए बाहरी थे, लिहाजा शशांक ने अपने परिवार की कमजोर हुई सियासी जमीन बनाने में इस गैप का लाभ उठाया। जागृति यात्रा की, युवाओं की टोली बनाई और उनकी मदद शुरू की। कोविड काल में आम लोगों की मदद से वह नेतृत्व की नजर में जगह बनाने में कामयाब रहे। शशांक कहते हैं देवरिया और कुशीनगर के करीब 400 गांव घूमा हूं। गांव के लोगों में असीम ऊर्जा है। हनुमत शक्ति की तरह उनकी प्रतिभा और ऊर्जा को जगाना है। कहते हैं कि स्वावलंबी भारत अभियान प्रकल्प के काम बढ़ाकर देवरिया व कुशीनगर में रोजगार की समस्या का समाधान करना है। हिंदी-भोजपुरी कॉल सेंटर की स्थापना करा चुका हूं, जिसमें 220 लोग काम करते हैं। शशांक ने मिडिल ऑफ़ डायमंड इंडिया व अमृत काल का भारत: उद्यमिता और भागीदारी से राष्ट्र निर्माण जैसी पुस्तकें भी लिखी हैं।